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मिस्ड काल

Updated: Dec 24, 2020


ज़िंदगी का रूप घड़ी घड़ी बदलता रहता है। ज़माने के साथ तकनीकों और अपने जीवन विधी भी बदल जाती है। कभी कभी दिल को लगता है अपने बचपन में हमारे माता पिता का जीवन विधान बहुत सुंदर था। हम भी कितने औत्सुकता से उस विधी का अनुसरण करते बड़े हो गये। शायद हमारा ही आख़री प्रजनन जो पुराने और आधुनिक जीवन विधी का अनुभव पाये है। धर में कम से कम आठ से दस लोग रहते थे, कही एक कोने में बस एक (टेलिफ़ोन) दूरवाणी) रहती थी। कोई एक धर का सदस्य बुलावा का जवाब देते थे। किसका बुलावा आया था किसी को भी क़बर नहीं होता था अगर जवाब नहीं दे पाये तो। वो मिस्ड काल के ऊपर इतना चर्चा तक नहीं होती थी। बस एक क्षण दुबारा बुलावा का राह देखकर सब अपने अपने काम में व्यस्त हो जाते थे। हर घर में दूरवाणी की सुविधा होती तक नहीं थी। आजू बाज़ू वालों का दूरवाणी संख्या दिया जाता था। मिस्ड काल से किसीको परेशानी न थी और न ही कोई उस मिस्ड काल से दिक़्क़त नहीं होती थी।


धीरे धीरे जैसे जैसे तकनीकें बढ़ते गये सुविधायें बढ़ती गयी हमें लगने लगा कितना अच्छा विज्ञान है। कहाँ से बुलावा आया वो भी जान सकते है। आरंभ में सब कुछ अच्छा लगता है, पर समय के साथ इस समुदाय को निभाते निभाते कहीं न कहीं जरूर तकनीकें भारी पड़ने लग जाते है। अपनी शांति थोड़ा थोड़ा हम से दूर होने लगी।

(मोबाइल) चरवाणी का प्रवेश हुआ। घर के मुख्यवर के पास एक चरवाणी रहता था। हाँ ख़ुशियों की हद नहीं थी। एक क्षण बात इतना महँगा पड़ता था। क्रमश: लोगों में अनुराग और प्यार से ज़्यादा ख़र्चा या पैसों पर ध्यान अधिक चलता गया। किसीका मिस्ड काल आयेगा तो पहले वाली बात न रही क्योंकि अब हम सोचने लगे एक बार उनको चरवाणी से बुलाया तो पैसे व्यच्च करना होगा। देखिए तकनीकों से अपनी अनुमति के बिना हमारा सोच बदलने लगा। लोगों में प्यार और अनुराग से अधिक हिसाब पर ध्यान जाता गया।

कुछ साल और बीते घर के हर सदस्य के हाथ में एक चरवाणी। उससे अच्छा भी बुरा भी। अच्छा इसलिए कि घरवालों के बारे में बिलकुल संदेश वक्त पर मिलते रहते है। बुरा इसलिए लोग आपस में समय बिताने से ज़्यादा अपने चरवाणी से अधिक समय बिताते है। मिस्ड कालों से परेशानियाँ ज़्यादा हो गए है। तकनीकों के साथ रिश्तों को निभाना भी भारी पड़ रहा है। मिस्ड कालों को सही वक्त पर जवाब न देने से बहुत सी रिश्तों में दरार सा दिख जाते है कभी। कभी लगातार मिस्ड कालों से आपत्कालीन विषयों का भी वक्त पर पहूँचकर कुछ बहतर भी होता है। लड़के और लड़कियों को चरवाणी एक सदुपाय भी है और दुरुपयोग भी।स्वेच्छा आज अच्छे से ज़्यादा ग़लत मार्ग की ओर खींच रहा है। बार बार मिस्ड कालों से अगर लड़का या लड़की की व्यवहारों में फ़र्क़ पड़ रहा है तो माता पिता को चेतावनी है समझकर अपने बच्चों की ओर ध्यान बढ़ानी है। मिस्डकाल बजते ही ध्यान खो देना, घर में झूठ बोलना बच्चों के बिगड़ने की अपश्रृति नज़र आती है। आज कल हजार आँखें और कानों को हमेशा खोलकर रखना बहुत ज़रूरी है।


मिस्ड काल बहुत बार प्रश्न बनकर कई बार समस्या बनकर, कई बार गड़बड़ बनकर लोगों की शांति में अड़चन जारी है।

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